Call Now : 8989738486, 8120018052 | MAP
     
विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र बैरागढ़ भोपाल" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित भोपाल में एकमात्र केन्द्र है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज संस्कार केन्द्र बैरागढ़ के अतिरिक्त भोपाल में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Sanskar Kendra Bairagarh Bhopal is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Sanskar Kendra Bairagarh Bhopal is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Bhopal. We do not have any other branch or Centre in Bhopal. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal

पञ्चम समुल्लास खण्ड-3

(प्रश्न) संन्यासग्रहण करना ब्राह्मण ही का धर्म है वा क्षत्रियादि का भी?

(उत्तर) ब्राह्मण ही को अधिकार है, क्योंकि जो सब वर्णों में पूर्ण विद्वान् धार्मिक परोपकारप्रिय मनुष्य है उसी का ब्राह्मण नाम है। विना पूर्ण विद्या के धर्म परमेश्वर की निष्ठा और वैराग्य के संन्यास ग्रहण करने में संसार का विशेष उपकार नहीं हो सकता। इसीलिये लोकश्रुति है कि ब्राह्मण को संन्यास का अधिकार है, अन्य को नहीं यह मनु का प्रमाण भी है-

एष वोऽभिहितो धर्मो ब्राह्मणस्य चतुर्विधः।
पुण्योऽक्षयफलः प्रेत्य राजधर्मं निबोधत।। मनु०।।

यह मनु जी महाराज कहते हैं कि हे ऋषियो! यह चार प्रकार अर्थात् ब्रह्मचर्य्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासाश्रम करना ब्राह्मण का धर्म है। यहां वर्त्तमान में पुण्यस्वरूप और शरीर छोड़े पश्चात् मुक्तिरूप अक्षय आनन्द का देने वाला संन्यास धर्म है। इस के आगे राजाओं का धर्म मुझ से सुनो। इस से यह सिद्ध हुआ कि संन्यासग्रहण का अधिकार मुख्य करके ब्राह्मण का है और क्षत्रियादि का ब्रह्मचर्याश्रम है।

(प्रश्न) संन्यासग्रहण की आवश्यकता क्या है?

(उत्तर) जैसे शरीर में शिर की आवश्यकता है वैसे ही आश्रमों में संन्यासाश्रम की आवश्यकता है। क्योंकि इसके विना विद्या धर्म कभी नहीं बढ़ सकते और दूसरे आश्रमों को विद्याग्रहण गृहकृत्य और तपश्चर्यादि का सम्बन्ध होने से अवकाश बहुत कम मिलता है। पक्षपात छोड़ कर वर्त्तना दूसरे आश्रमों को दुष्कर है। जैसा संन्यासी सर्वतोमुक्त होकर जगत् का उपकार करता है, वैसा अन्य आश्रमी नहीं कर सकता। क्योंकि संन्यासी को सत्यविद्या से पदार्थों के विज्ञान की उन्नति का जितना अवकाश मिलता है उतना अन्य आश्रमी को नहीं मिल सकता। परन्तु जो ब्रह्मचर्य से संन्यासी होकर जगत् को सत्यशिक्षा करके जितनी उन्नति कर सकता है उतनी गृहस्थ वा वानप्रस्थ आश्रम करके संन्यासाश्रमी नहीं कर सकता।

(प्रश्न) संन्यास ग्रहण करना ईश्वर के अभिप्राय से विरुद्ध है क्योंकि ईश्वर का अभिप्राय मनुष्यों की बढ़ती करने में है। जब गृहाश्रम नहीं करेगा तो उस से सन्तान ही न होंगे। जब संन्यासाश्रम ही मुख्य है और सब मनुष्य करें तो मनुष्यों का मूलच्छेदन हो जायेगा।

(उत्तर) अच्छा, विवाह करके भी बहुतों के सन्तान नहीं होते अथवा होकर शीघ्र नष्ट हो जाते हैं फिर वह भी ईश्वर के अभिप्राय से विरुद्ध करने वाला हुआ। जो तुम कहो कि ‘यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः।’ यह किसी कवि का वचन है।

(अर्थ) जो यत्न करने से भी कार्य सिद्ध न हो तो इस में क्या दोष?  अर्थात् कोई भी नहीं। तो हम तुम से पूछते हैं कि गृहाश्रम से बहुत सन्तान होकर आपस में विरुद्धाचरण कर लड़ मरें तो हानि कितनी बड़ी होती है। समझ के विरोध से लड़ाई बहुत होती है। जब संन्यासी एक वेदोक्त धर्म के उपदेश से परस्पर प्रीति उत्पन्न करावेगा तो लाखों मनुष्यों को बचा देगा। सहस्रों गृहस्थ के समान मनुष्यों की बढ़ती करेगा। और सब मनुष्य संन्यासग्रहण कर ही नहीं सकते। क्योंकि सब की विषयासक्ति कभी नहीं छूट सकेगी। जो-जो संन्यासियों के उपदेश से धार्मिक मनुष्य होंगे वे सब जानो संन्यासी के पुत्र तुल्य हैं।

(प्रश्न) संन्यासी लोग कहते हैं कि हम को कुछ कर्त्तव्य नहीं। अन्न वस्त्र लेकर आनन्द में रहना, अविद्यारूप संसार से माथापच्ची क्यों करना? अपने को ब्रह्म मानकर सन्तुष्ट रहना। कोई आकर पूछे तो उस को भी वैसा ही उपदेश करना कि तू भी बह्म्र है । तझु को पाप पुण्य नहीं लगता क्योकि शीतोष्ण शरीर, क्षुधा तृषा प्राण और सुख दुःख मन का धर्म है। जगत् मिथ्या और जगत् के व्यवहार भी सब कल्पित अर्थात् झूठे हैं इसलिये इस में फंसना बुद्धिमानों का काम नहीं। जो कुछ पाप पुण्य होता है वह देह और इन्द्रियों का धर्म है आत्मा का नहीं। इत्यादि उपदेश करते हैं और आपने कुछ विलक्षण संन्यास का धर्म कहा है। अब हम किस की बात सच्ची और किस की झूठी मानें ?

(उत्तर) क्या उन को अच्छे कर्म भी कर्त्तव्य नहीं?  देखो-‘वैदिकैश्चैव कर्मभिः’ मनु जी ने वैदिक कर्म जो धर्मयुक्त सत्य कर्म हैं, संन्यासियों को भी अवश्य करना लिखा है। क्या भोजन छादनादि कर्म वे छोड़ सकेंगे?  जो ये कर्म नहीं छूट सकते तो उत्तम कर्म छोड़ने से वे पतित और पापभागी नहीं होंगे?  जब गृहस्थों से अन्न वस्त्रदि लेते हैं और उन का प्रत्युपकार नहीं करते तो क्या वे महापापी नहीं होंगे ? जैसे आंख से देखना कान से सुनना न हो तो आंख और कान का होना व्यर्थ है, वैसे ही जो संन्यासी सत्योपदेश और वेदादि सत्यशास्त्रें का विचार, प्रचार नहीं करते तो वे भी जगत् में व्यर्थ भाररूप हैं। और जो अविद्या रूप संसार से माथापच्ची क्यों करना आदि लिखते और कहते हैं वैसे उपदेश करने वाले ही मिथ्यारूप और पाप के बढ़ाने हारे पापी हैं। जो कुछ शरीरादि से कर्म किया जाता है वह आत्मा ही का और उस के फल का भोगने वाला भी आत्मा है।

जो जीव को ब्रह्म बतलाते हैं वे अविद्या निद्रा में सोते हैं। क्योंकि जीव अल्प, अल्पज्ञ और ब्रह्म सर्वव्यापक सर्वज्ञ है । ब्रह्म नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वभावयुक्त है। और जीव कभी बद्ध कभी मुक्त रहता है। ब्रह्म को सर्वव्यापक सर्वज्ञ होने से भ्रम वा अविद्या कभी नहीं हो सकती। और जीव को कभी विद्या और कभी अविद्या होती है। ब्रह्म जन्ममरण दुःख को कभी नहीं प्राप्त होता है और जीव प्राप्त होता है। इसलिये वह उनका उपदेश मिथ्या है।

(प्रश्न) ‘संन्यासी सर्वकर्म्मविनाशी’ और अग्नि तथा धातु को स्पर्श नहीं करते। यह बात सच्ची है वा नहीं?

(उत्तर) नहीं। ‘सम्यङ् नित्यमास्ते यस्मिन् यद्वा सम्यङ् न्यस्यन्ति दुःखानि कर्माणि येन स संन्यासः, स प्रशस्तो विद्यते यस्य स संन्यासी’। जो ब्रह्म और उसकी आज्ञा में उपविष्ट अर्थात् स्थित और जिस से दुष्ट कर्मों का त्याग किया जाय संन्यास, वह उत्तम स्वभाव जिस में हो वह संन्यासी कहाता है। इस में सुकर्म का कर्त्ता और दुष्ट कर्मों का विनाश करने वाला संन्यासी कहाता है।

(प्रश्न) अध्यापन और उपदेश गृहस्थ किया करते हैं, पुनः संन्यासी का क्या प्रयोजन ?

(उत्तर) सत्योपदेश सब आश्रमी करें और सुनें परन्तु जितना अवकाश और निष्पक्षपातता संन्यासी को होती है उतनी गृहस्थों को नहीं। हाँ ! जो ब्राह्मण हैं उनका यही काम है कि पुरुष पुरुषों को और स्त्री स्त्रियों को सत्योपदेश और पढ़ाया करें। जितना भ्रमण का अवकाश संन्यासी को मिलता है उतना गृहस्थ ब्राह्मणादिकों को कभी नहीं मिल सकता। जब ब्राह्मण वेदविरुद्ध आचरण करें तब उनका नियन्ता संन्यासी होता है। इसलिये संन्यास का होना उचित है।

(प्रश्न) ‘एकरात्रिं वसेद् ग्रामे’ इत्यादि वचनों से संन्यासी को एकत्र एकरात्रिमात्र रहना अधिक निवास न करना चाहिये।

(उत्तर) यह बात थोड़े से अंश में तो अच्छी है कि एकत्र वास करने से जगत् का उपकार अधिक नहीं हो सकताऔर स्थानान्तर का भी अभिमान होता है। राग, द्वेष भी अधिक होता है। परन्तु जो विशेष उपकार एकत्र रहने से होता हो तो रहे। जैसे जनक राजा के यहां चार-चार महीने तक पञ्चशिखादि और अन्य संन्यासी कितने ही वर्षों तक निवास करते थे और ‘एकत्र न रहना’ यह बात आजकल के पाखण्डी सम्प्रदायियों ने बनाई है। क्योंकि जो संन्यासी एकत्र अधिक रहेगा तो हमारा पाखण्ड खण्डित होकर अधिक न बढ़ सकेगा।

(प्रश्न) यतीनां काञ्चनं दद्यात्ताम्बूलं ब्रह्मचारिणाम्।
चौराणामभयं दद्यात्स नरो नरकं व्रजेत्।।

इत्यादि वचनों का अभिप्राय यह है कि संन्यासियों को जो सुवर्ण दान दे तो दाता नरक को प्राप्त होवे।

(उत्तर) यह बात भी वर्णाश्रमविरोधी सम्प्रदायी और स्वार्थसिन्धु वाले पौराणिकों की कल्पी हुई है, क्योंकि संन्यासियों को धन मिलेगा तो वे हमारा खण्डन बहुत कर सकेंगे और हमारी हानि होगी तथा वे हमारे अधीन भी न रहेंगे। और जब भिक्षादि व्यवहार हमारे आधीन रहेगा तो डरते रहेंगे। जब मूर्ख और स्वार्थियों को दान देने  में अच्छा समझते हैं तो विद्वान् और परोपकारी संन्यासियों को देने में कुछ भी दोष नहीं हो सकता। देखो- विविधानि च रत्नानि विविक्तेषूपपादयेत्।। मनु०।।

नाना प्रकार के रत्न सुवर्णादि धन (विविक्त) अर्थात् संन्यासियों को देवें और वह श्लोक भी अनर्थक है। क्योंकि संन्यासी को सुवर्ण देने से यजमान नरक को जावे तो चांदी, मोती, हीरा आदि देने से स्वर्ग को जायेगा।

(प्रश्न) यह पण्डित जी इस का पाठ बोलते समय भूल गये। यह ऐसा है कि ‘यतिहस्ते धनं दद्यात्’ अर्थात् जो संन्यासियों के हाथ में धन देता है वह नरक में जाता है।

(उत्तर) यह भी वचन अविद्वान् के कपोलकल्पना से रचा है। क्योंकि जो हाथ में धन देने से दाता नरक को जाय तो पग पर धरने वा गठरी बांध कर देने से स्वर्ग को जायेगा। इसलिए ऐसी कल्पना मानने योग्य नहीं। हां ! यह बात  तो है कि जो संन्यासी योगक्षेम से अधिक रक्खेगा तो चोरादि से पीड़ित और मोहित भी हो जायगा परन्तु जो विद्वान् है वह अयुक्त व्यवहार कभी न करेगा, न मोह में फंसेगा। क्योंकि वह प्रथम गृहाश्रम में अथवा ब्रह्मचर्य में सब भोग कर वा सब देख चुका है और जो ब्रह्मचर्य से होता है वह पूर्ण वैराग्ययुक्त होने से कभी कहीं नहीं फंसता।

(प्रश्न) लोग कहते हैं कि श्राद्ध में संन्यासी आवे वा जिमावे तो उस के पितर भाग जायें और नरक में गिरें।

(उत्तर) प्रथम तो मरे हुए पितरों का आना और किया हुआ श्राद्ध मरे हुए पितरों को पहुंचना ही असम्भव, वेद और युक्तिविरुद्ध होने से मिथ्या है। और जब आते ही नहीं तो भाग कौन जायेंगे?  जब अपने पाप पुण्य के अनुसार ईश्वर की व्यवस्था से मरण के पश्चात् जीव जन्म लेते हैं तो उन का आना कैसे हो सकता है?  इसलिये यह भी बात पेटार्थी पुराणी और वैरागियों की मिथ्या कल्पी हुई है। हां यह तो ठीक है कि जहां संन्यासी जायेंगे वहां यह मृतकश्राद्ध करना वेदादि शास्त्रें से विरुद्ध होने से पाखण्ड दूर भाग जायगा।

(प्रश्न) जो ब्रह्मचर्य से संन्यास लेवेगा उस का निर्वाह कठिनता से होगा और काम का रोकना भी अति कठिन है। इसलिए गृहाश्रम वानप्रस्थ होकर जब वृद्ध हो जाय तभी संन्यास लेना अच्छा है।

(उत्तर) जो निर्वाह न कर सके, इन्द्रियों को न रोक सके, वह ब्रह्मचर्य से संन्यास न लेवे। परन्तु जो रोक सके वह क्यों न लेवे?  जिस पुरुष ने विषय के दोष और वीर्यसंरक्षण के गुण जाने हैं वह विषयासक्त कभी नहीं होता। और उस का वीर्य्य विचाराग्नि का इन्धनवत् है अर्थात् उसी में व्यय हो जाता है। जैसे वैद्य और औषधों की आवश्यकता रोगी के लिये होती है वैसी नीरोगी के लिये नहीं। इसी प्रकार जिस पुरुष वा स्त्री को विद्या धर्मवृद्धि और सब संसार का उपकार करना ही प्रयोजन हो वह विवाह न करे। जैसे पञ्चशिखादि पुरुष और गार्गी आदि स्त्रियां हुई थीं। इसलिये संन्यासी होना अधिकारियों को उचित है। और जो अनधिकारी संन्यास ग्रहण करेगा तो आप डूबेगा औरों को भी डुबावेगा। जैसे ‘सम्राट्’ चक्रवर्ती राजा होता है वैसे ‘परिव्राट्’ संन्यासी होता है। प्रत्युत राजा अपने देश में वा स्वसम्बन्धियों में सत्कार पाता है और संन्यासी सर्वत्र पूजित होता है।

विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।१।। -यह चाणक्य-नीतिशास्त्र का श्लोक है।

विद्वान् और राजा की कभी तुल्यता नहीं हो सकती, क्योंकि राजा अपने राज्य ही में मान और सत्कार पाता है और विद्वान् सर्वत्र मान और प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है। इसलिये विद्या पढ़ने, सुशिक्षा लेने और बलवान् होने आदि के लिये ब्रह्मचर्य्य, सब प्रकार के उत्तम व्यवहार सिद्ध करने के अर्थ गृहस्थ; विचार ध्यान और विज्ञान बढ़ाने तपश्चर्या करने के लिये वानप्रस्थ; और वेदादि सत्यशास्त्रें का प्रचार, धर्म व्यवहार का ग्रहण और दुष्ट व्यवहार के त्याग, सत्योपदेश और सब को निःसन्देह करने आदि के लिये संन्यासाश्रम है। परन्तु जो इस संन्यास के मुख्य धर्म सत्योपदेशादि  नहीं करते वे पतित और नरकगामी हैं इस से संन्यासियों को उचित है कि सदा सत्योपदेश शंकासमाधान, वेदादि सत्यशास्त्रें का अध्यापन और वेदोक्त धर्म की वृद्धि प्रयत्न से करके सब संसार की उन्नति किया करें।

(प्रश्न) जो संन्यासी से अन्य साधु, वैरागी, गुसाईं, खाखी आदि हैं वे भी संन्यासाश्रम में गिने जायेंगे वा नहीं ?

(उत्तर) नहीं। क्योंकि उन में संन्यास का एक भी लक्षण नहीं। वे वेदविरुद्ध मार्ग में प्रवृत्त होकर वेद से अधिक अपने सम्प्रदाय के आचार्य्यों के वचन मानते और अपने ही मत की प्रशंसा करते। मिथ्या प्रपंच में फंसकर अपने स्वार्थ के लिये दूसरों को अपने-अपने मत में फंसाते हैं। सुधार करना तो दूर रहा, उस के बदले में संसार को बहका कर अधोगति को प्राप्त कराते और अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं। इसलिये इन को संन्यासाश्रम में नहीं गिन सकते किन्तु ये स्वार्थाश्रमी तो पक्के हैं। इस में कुछ सन्देह नहीं। जो स्वयं धर्म में चलकर सब संसार को चलाते हैं, जो आप और सब संसार को इस लोक अर्थात् वर्त्तमान जन्म में, परलोक अर्थात् दूसरे जन्म में स्वर्ग अर्थात् सुख का भोग करते कराते हैं। वे ही धर्मात्मा जन संन्यासी और महात्मा हैं।

यह संक्षेप में संन्यासाश्रम की शिक्षा लिखी । अब इस के आगे राज- प्रजाधर्म विषय लिखा जाएगा ।

इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे
सुभाषाविभूषिते वानप्रस्थसंन्यासाश्रमविषये
पञ्चमः समुल्लासः सम्पूर्णः।।५।।

 

क्षेत्रीय कार्यालय (भोपाल)
आर्य समाज संस्कार केन्द्र
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट भोपाल शाखा
गायत्री मन्दिर, CTO, Camp No. 12
रेलवे स्टेशन के पास, बैरागढ़
भोपाल (मध्य प्रदेश) 462030
हेल्पलाइन : 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com 

 

राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

---------------------------------------

Regional Office (Bhopal)
Arya Samaj Sanskar Kendra
Akhil Bharat Arya Samaj Trust Bhopal Branch
Gayatri Mandir, CTO Camp No.-12
Near Railway Station, Bairagarh
Bhopal (Madhya Pradesh) 462030
Helpline No.: 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com 

 

National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

 

It is good in a small fraction that the habit of the world cannot be more than the gathering habitat and there is also the pride of transfer. There is more passion, rage too. But whatever special benefit is due to gathering. For example, Panchashikhadi and other ascetics lived here for four months in the Janak Raja and for many years, the hypocrites have made this fact not to be gathered.

 

Chaptar Five-3 Satyarth Prakash (Light of Truth) | arya samaj wedding procedure in Bhopal (8989738486) | Arya Samaj Mandir Bhopal | Arya Samaj Marriage Guidelines Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage consultants in Bhopal | court marriage consultants in Bhopal | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage certificate Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Marriage Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage registration Bhopal | arya samaj marriage documents Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Wedding Bhopal | arya samaj intercaste marriage Bhopal | arya samaj wedding Bhopal | arya samaj wedding rituals Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj wedding legal Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj shaadi Bhopal | arya samaj mandir shaadi Bhopal | arya samaj shadi procedure Bhopal | arya samaj mandir shadi valid Bhopal | arya samaj mandir shadi Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage Bhopal | validity of arya samaj marriage certificate Bhopal | validity of arya samaj marriage Bhopal.

Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Bhopal | Aryasamaj Mandir Helpline Bhopal | inter caste marriage Helpline Bhopal | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Bhopal | Arya Samaj Bhopal | Arya Samaj Mandir Bhopal | arya samaj marriage Bhopal | arya samaj marriage rules Bhopal | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Bhopal | human rights in Bhopal | human rights to marriage in Bhopal | Arya Samaj Marriage Ceremony Bhopal | Arya Samaj Wedding Ceremony Bhopal | Documents required for Arya Samaj marriage Bhopal | Arya Samaj Legal marriage service Bhopal.

Arya Samaj Pandits Helpline Bhopal | Arya Samaj Pandits Bhopal | Arya Samaj Pandits for marriage Bhopal | Arya Samaj Temple Bhopal | Arya Samaj Pandits for Havan Bhopal | Arya Samaj Pandits for Pooja Bhopal | Pandits for marriage Bhopal | Pandits for Pooja Bhopal | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Bhopal | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Bhopal | Vedic Pandits Helpline Bhopal | Hindu Pandits Helpline Bhopal | Pandit Ji Bhopal | Arya Samaj Intercast Matrimony Bhopal | Arya Samaj Hindu Temple Bhopal | Hindu Matrimony Bhopal | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह भोपाल | हवन भोपाल | आर्यसमाज पंडित भोपाल | आर्य समाजी पंडित भोपाल | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह भोपाल | आर्यसमाज मन्दिर भोपाल | आर्य समाज मन्दिर विवाह भोपाल | वास्तु शान्ति हवन भोपाल | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भोपाल मध्य प्रदेश भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Bhopal Madhya Pradesh India | सत्यार्थप्रकाशः

all india arya samaj marriage place
pandit requirement
Copyright © 2022. All Rights Reserved. aryasamajmandirbhopal.com