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चौदहवां समुल्लास खण्ड-13

१५३- बदला दिये जावेंगे कर्मानुसार।। और प्याले हैं भरे हुए ।। जिस दिन खड़े होंगे रूह और फरिश्ते सफ बांध कर।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ७८। आ० २६। ३४। ३८।।

(समीक्षक) यदि कर्मानुसार फल दिया जाता तो सदा बहिश्त में रहने वाले हूरें फरिश्ते और मोती के सदृश लड़कों को कौन कर्म के अनुसार सदा के लिये बहिश्त मिला? जब प्याले भर-भर शराब पीयेंगे तो मस्त हो कर क्यों न लड़ेंगे? रूह नाम यहां एक फरिश्ते का है जो सब फरिश्तों से बड़ा है! क्या खुदा रूह तथा अन्य फरिश्तों को पंक्तिबद्ध खड़े कर के पलटन बांधेगा? क्या पलटन से सब जीवों को सजा दिलावेगा? और खुदा उस समय खड़ा होगा वा बैठा? यदि कयामत तक खुदा अपनी सब पलटन एकत्र करके शैतान को पकड़ ले तो उस का राज्य निष्कण्टक हो जाय। इस का नाम खुदाई है।।१५३।।

१५४- जब कि सूर्य लपेटा जावे।। और जब कि तारे गदले हो जावें।। और जब कि पहाड़ चलाये जावें।। और जब आसमान की खाल उतारी जावे।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८१। आ० १। २। ३। ११।।

(समीक्षक) यह बड़ी बेसमझ की बात है कि गोल सूर्यलोक लपेटा जावेगा? और तारे गदले क्योंकर हो सकेंगे? और पहाड़ जड़ होने से कैसे चलेंगे? और आकाश को क्या पशु समझा कि उस की खाल निकाली जावेगी? यह बड़ी बेसमझ और जंगलीपन की बात है।।१५४।।

१५५- और जब कि आसमान फट जावे।। और जब तारे झड़ जावें।। और जब दर्या चीरे जावें।। और जब कबरें जिला कर उठाई जावें।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८२। आ० १। २। ३। ४।।

(समीक्षक) वाह जी कुरान के बनाने वाले फिलासफर! आकाश को क्योंकर फाड़ सकेगा? और तारों को कैसे झाड़ सकेगा? और दर्या क्या लकड़ी है जो चीर डालेगा? और कबरें क्या मुरदे हैं जो जिला सकेगा? ये सब बातें लड़कों के सदृश हैं।।१५५।।

१५६- कसम है आसमान बुर्जों वाले की।। किन्तु वह कुरान है बड़ा।। बीच लौह महफूज के (अर्थात् सुरक्षित तख्ती पर लिखा हुआ) ।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८५। आ० १। २१। २२।।

(समीक्षक) इस कुरान के बनाने वाले ने भूगोल खगोल कुछ भी नहीं पढ़ा था। नहीं तो आकाश को किले के समान बुर्जों वाला क्यों कहता? यदि मेषादि राशियों को बुर्ज कहता है तो अन्य बुर्ज क्यों नहीं? इसलिये ये बुर्ज नहीं हैं किन्तु सब तारे लोक हैं। क्या वह कुरान खुदा के पास है? यदि यह कुरान उस का किया है तो वह भी विद्या और युक्ति से विरुद्ध अविद्या से अधिक भरा होगा।।१५६।।

१५७- निश्चय वे मकर करते हैं एक मकर।। और मैं भी मकर करता हूँ एक मकर।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८६। आ० १६।१७।।

(समीक्षक) मकर कहते हैं ठगपन को, क्या खुदा भी ठग है? और क्या चोरी का जवाब चोरी और झूठ का जवाब झूठ है? क्या कोई चोर भले आदमी के घर में चोरी करे तो क्या भले आदमी को चाहिए कि उस के घर में जा के चोरी करे! वाह! वाह जी!! कुरान के बनाने वाले।।१५७।।

१५८- और जब आवेगा मालिक तेरा और फरिश्ते पंक्ति बांध के ।। और लाया जावेगा उस दिन दोजख को।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८९। आ० २१। २२।।

(समीक्षक) कहो जी! जैसे कोटवाल वा सेनाध्यक्ष अपनी सेना को लेकर पंक्ति बांध फिरा करे वैसा ही इन का खुदा है? क्या दोजख को घड़ा सा समझा है कि जिस को उठा के जहाँ चाहे वहाँ ले जावे! यदि इतना छोटा सा है तो असंख्य कैदी उस में कैसे समा सकेंगे? ।।१५८।।

१५९- बस कहा था वास्ते उन के पैगम्बर खुदा के ने, रक्षा करो ऊंटनी खुदा की को, और पानी पिलाना उस के को।। बस झुठलाया उस को, बस पांव काटे उस के, बस मरी डाली ऊपर उन के, रब उन के ने।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ९१। आ० १३। १४।।

(समीक्षक) क्या खुदा भी ऊंटनी पर चढ़ के सैल किया करता है? नहीं तो किस लिये रक्खी? और विना कयामत के अपना नियम तोड़ उन पर मरी रोग क्यों डाला? यदि डाला तो उन को दण्ड किया, फिर कयामत की रात में न्याय और उस रात का होना झूठ समझा जायगा? फिर इस ऊंटनी के लेख से यह अनुमान होता है कि अरब देश में ऊंट, ऊंटनी के सिवाय दूसरी सवारी कम होती है। इस से सिद्ध होता है कि किसी अरब देशी ने कुरान बनाया है।।१५९।।

१६०- यों जो न रुकेगा अवश्य घसीटेंगे उस को हम साथ बालों माथे के।। वह माथा कि झूठा है और अपराधी।। हम बुलावेंगे फरिश्ते दोजख के को।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ९६। आ० १५। १६। १८।।

(समीक्षक) इस नीच चपरासियों के काम घसीटने से भी खुदा न बचा। भला माथा भी कभी झूठा और अपराधी हो सकता है? सिवाय जीव के, भला यह कभी खुदा हो सकता है कि जैसे जेलखाने के दरोगा को बुलावा भेजे।।१६०।।

१६१- निश्चय उतारा हम ने कुरान को बीच रात -कदर के।। और क्या जाने तू क्या है रात -कदर की? ।। उतरते हैं फरिश्ते और पवित्रत्मा बीच उस के, साथ आज्ञा मालिक अपने के वास्ते हर काम के।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ९७। आ० १। २। ४।।

(समीक्षक) यदि एक ही रात में कुरान उतारा तो वह आयत अर्थात् उस समय में उतरी और धीरे-धीरे उतारा यह बात सत्य क्योंकर हो सकेगी? और रात्री अन्धेरी है इस में क्या पूछना है? हम लिख आये हैं ऊपर नीचे कुछ भी नहीं हो सकता और यहां लिखते हैं कि फरिश्ते और पवित्रत्मा खुदा के हुक्म से संसार का प्रबन्ध करने के लिये आते हैं। इस से स्पष्ट हुआ कि खुदा मनुष्यवत् एकदेशी है। अब तक देखा था कि खुदा फरिश्ते और पैगम्बर तीन की कथा है । अब एक पवित्रत्मा चौथा निकल पड़ा! अब न जाने यह चौथा पवित्रत्मा क्या है? यह तो ईसाइयों के मत अर्थात् पिता पुत्र और पवित्रत्मा तीन के मानने से चौथा भी बढ़ गया। यदि कहो कि हम इन तीनों को खुदा नहीं मानते, ऐसा भी हो, परन्तु जब पवित्रत्मा पृथक् है तो खुदा फरिश्ते और पैगम्बर को पवित्रत्मा कहना चाहिये वा नहीं? यदि पवित्रत्मा है तो एक ही का नाम पवित्रत्मा क्यों? और घोड़े आदि जानवर, रात दिन और कुरान आदि की खुदा कसमें खाता है। कसमें खाना भले लोगों का काम नहीं।।१६१।।

अब इस कुरान के विषय को लिख के बुद्धिमानों के सम्मुख स्थापित करता हूँ कि यह पुस्तक कैसा है? मुझ से पूछो तो यह किताब न ईश्वर, न विद्वान् की बनाई और न विद्या की हो सकती है। यह तो बहुत थोड़ा सा दोष प्रकट किया इसलिये कि लोग धोखे में पड़कर अपना जन्म व्यर्थ न गमावें। जो कुछ इस में थोड़ा सा सत्य है वह वेदादि विद्या पुस्तकों के अनुकूल होने से जैसे मुझ को ग्राह्य है वैसे अन्य भी मजहब के हठ और पक्षपातरहित विद्वानों और बुद्धिमानों को ग्राह्य है । इस के विना जो कुछ इस में है सब अविद्या भ्रमजाल और मनुष्य के आत्मा को पशुवत् बनाकर शान्तिभंग करा के उपद्रव मचा मनुष्यों में विद्रोह फैला परस्पर दुःखोन्नति करने वाला विषय है। और पुनरुक्त दोष का तो कुरान जानो भण्डार ही है। परमात्मा सब मनुष्यों पर कृपा करे कि सब से सब प्रीति परस्पर मेल और एक दूसरे के सुख की उन्नति करने में प्रवृत्त हों। जैसे मैं अपना वा दूसरे मतमतान्तरों का दोष पक्षपात रहित होकर प्रकाशित करता हूँ। इसी प्रकार यदि सब विद्वान् लोग करें तो क्या कठिनता है कि परस्पर का विरोध छूट, मेल होकर आनन्द में एकमत होके सत्य की प्राप्ति सिद्ध हो। यह थोड़ा सा कुरान के विषय में लिखा। इस को बुद्धिमान् धार्मिक लोग ग्रन्थकार के अभिप्राय को समझ, लाभ लेवें। यदि कहीं भ्रम से अन्यथा लिखा गया हो तो उस को शुद्ध कर लेवें। अब एक बात यह शेष है कि बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा वा छपवाया करते हैं कि हमारे मजहब की बात अथर्ववेद में लिखी है। इस का यह उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है।

(प्रश्न) क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद् देखो। यह साक्षात् उसमें लिखी है। फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है।

अथाल्लोपनिषदं व्याख्यास्यामः
अस्मांल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते।
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्द्ददु ।
ह या मित्रे इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरुणो मित्रस्तेजस्काम ।।१।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्रा ।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्णं ब्रह्माणं अल्लाम्।।२।।
अल्लोरसूलमहामदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्।।३।।
आदल्लाबूकमेककम्।। अल्लाबूक निखातकम्।।४।।
अल्लो यज्ञेन हुतहुत्वा। अल्ला सूर्यचन्द्रसर्वनक्षत्र ।।५।।
अल्ला ऋषीणां सर्वदिव्याँ इन्द्राय पूर्वं माया परममन्तरिक्षा ।।६।।
अल्ल पृथिव्या अन्तरिक्षं विश्वरूपम्।।७।।
इल्लां कबर इल्लां कबर इल्लाँ इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।८।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादिस्वरूपाय अथर्वणा श्यामा हुं ह्रीं
जनानपशूनसिद्धान् जलचरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट्।।९।।
असुरसंहारिणी हुं ह्रीं अल्लोरसूलमहमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्
इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।१०।।
इत्यल्लोपनिषत् समाप्ता।।

जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद साहब रसूल लिखा है इस से सिद्ध होता है कि मुसलमानों का मत वेदमूलक है।

(उत्तर) यदि तुम ने अथर्ववेद न देखा हो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्त्ति तक देखो । अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस काण्डयुक्त मन्त्रसंहिता अथर्ववेद को देख लो। कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम वा मत का निशान न देखोगे। और जो यह अल्लोपनिषद् है वह न अथर्ववेद में, न उस के गोपथ ब्राह्मण वा किसी शाखा में है। यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कुछ अर्बी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं। देखो! (अस्माल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है, जैसे-इस में (अस्माल्लां और इल्ले) अर्बी और (मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अर्बी के पढ़े हुए ने बनाई है। यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम अयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है। जैसी यह उपनिषद् बनाई है, वैसी बहुत सी उपनिषदें मतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं। जैसी कि स्वरोपनिषद्, नृसिहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं।

(प्रश्न) आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा अब तुम कहते हो। हम तुम्हारी बात कैसे मानें?

(उत्तर) तुम्हारे मानने वा न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है। जिस प्रकार से मैंने इस को अयुक्त ठहराई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्ववेद, गोपथ वा इस की शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है।

(प्रश्न) देखो! हमारा मत कैसा अच्छा है कि जिस में सब प्रकार का सुख और अन्त में मुक्ति होती है ।

(उत्तर) ऐसे ही अपने-अपने मत वाले सब कहते हैं कि हमारा ही मत अच्छा है, बाकी सब बुरे। विना हमारे मत के दूसरे मत में मुक्ति नहीं हो सकती।

अब हम तुम्हारी बात को सच्ची मानें वा उन की? हम तो यही मानते हैं कि सत्यभाषण, अहिंसा, दया आदि शुभ गुण सब मतों में अच्छे हैं और बाकी वाद, विवाद, ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्याभाषणादि कर्म सब मतों में बुरे हैं। यदि तुम को सत्य मत ग्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ग्रहण करो।

इसके आगे स्वमन्तव्यामन्तव्य का प्रकाश संक्षेप से लिखा जायगा।

इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे

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चतुर्दशसमुल्लासः सम्पूर्णः।।१४।।

 

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By writing the subject of the Quran, I set it before the wise, how is this book? If you ask me, this book can neither be created by God nor scholar nor by knowledge. This manifested very little defect so that people should not waste their birth in deception. Without this, all the ignorant illusions and disturbances created by making the soul of man beast beastly, and the rebellion spread among humans is a matter of misery. And know the Koran is a repository of repetitive guilt.

 

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