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त्रयोदश समुल्लास खण्ड-3

२५- तब अबिहराम ने बड़े तड़के उठ के रोटी और एक पखाल में जल लिया और हाजिरः के कन्धे पर धर दिया और लड़के को भी उसे सौंप के उसे विदा किया।। उसने उस लड़के को एक झाड़ी के तले डाल दिया।। और वह उसके सम्मुख बैठ के चिल्ला-चिल्ला रोई।। तब ईश्वर ने उस बालक का शब्द सुना।। -तौन उत्प० पर्व० २१। आ० १४। १५। १६। १७।।

(समीक्षक) अब देखिये! ईसाइयों के ईश्वर की लीला कि प्रथम तो सरः का पक्षपात करके हाजिरः को वहां से निकलवा दी और चिल्ला-चिल्ला रोई हाजिरः और शब्द सुना लड़के का। यह कैसी अद्भुत बात है? यह ऐसा हुआ होगा कि ईश्वर को भ्रम हुआ होगा कि यह बालक ही रोता है। भला यह ईश्वर और ईश्वर की पुस्तक की बात कभी हो सकती है? विना साधारण मनुष्य के वचन के इस पुस्तक में थोड़ी सी बात सत्य के सब असार भरा है।।२५।।

२६- और इन बातों के पीछे यों हुआ कि ईश्वर ने अबिरहाम की परीक्षा किई, और उसे कहा हे अबिरहाम! तू अपने बेटे का अपने इकलौते इजहाक को जिसे तू प्यार करता है; ले। उसे होम की भेंट के लिए चढ़ा।। और अपने बेटे इजहाक को बांध के उस वेदी में लकड़ियों पर धरा।। और अबिरहाम ने छुरी लेके अपने बेटे का घात करने के लिये हाथ बढ़ाया।। तब परमेश्वर के दूत ने स्वर्ग पर से उसे पुकारा कि अबिरहाम अबिरहाम।। अपना हाथ लड़के पर मत बढ़ा, उसे कुछ मत कर, क्योंकि अब मैं जानता हूं कि तू ईश्वर से डरता है।। - तौन उत्प० पर्व० २२। आ० १। २। ९। १०। ११। १२।।

(समीक्षक) अब स्पष्ट हो गया कि यह बाइबल का ईश्वर अल्पज्ञ है सर्वज्ञ नहीं। और अबिरहाम भी एक भोला मनुष्य था, नहीं तो ऐसी चेष्टा क्यों करता? और जो बाइबल का ईश्वर सर्वज्ञ होता तो उसकी भविष्यत् श्रद्धा को भी सर्वज्ञता से जान लेता। इससे निश्चित होता है कि ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं।।२६।।

२७- सो आप हमारी समाधिन में से चुन के एक में अपने मृतक को गाड़िये जिस तें आप अपने मृतक को गाड़ें। - तौन उत्प० पर्व० २३। आ० ६।।

(समीक्षक) मुर्दों के गाड़ने से संसार को बड़ी हानि होती है क्योंकि वह सड़ के वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फैला देता है।

(प्रश्न) देखो! जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नहीं और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है इसलिए गाड़ना अच्छा है।

(उत्तर) जो मृतक से प्रीति करते हो तो अपने घर में क्यों नहीं रखते? और गाड़ते भी क्यों हो? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया, अब दुर्गन्धमय मट्टी से क्या प्रीति? और जो प्रीति करते हो तो उसको पृथिवी में क्यों गाड़ते हो क्योंकि किसी से कोई कहे कि तुझ को भूमि में गाड़ देवें तो वह सुन कर प्रसन्न कभी नहीं होता। उसके मुख आंख और शरीर पर धूल, पत्थर, ईंट, चूना डालना, छाती पर पत्थर रखना कौन सा प्रीति का काम है? और सन्दूक में डाल के गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है। दूसरा एक मुर्दे के लिए कम से कम ६ हाथ लम्बी और ४ हाथ चौड़ी भूमि चाहिए। इसी हिसाब से सौ, हजार वा लाख अथवा क्रोड़ों मनुष्यों के लिए कितनी भूमि व्यर्थ रुक जाती है। न वह खेत, न बगीचा, और न वसने के काम की रहती है। इसलिये सब से बुरा गाड़ना है, उससे कुछ थोड़ा बुरा जल में डालना, क्योंकि उसको जलजन्तु उसी समय चीर फाड़ के खा लेते हैं परन्तु जो कुछ हाड़ वा मल जल में रहेगा वह सड़ कर जगत् को दुःखदायक होगा। उससे कुछ एक थोड़ा बुरा जंगल में छोड़ना है क्योंकि उसको मांसाहारी पशु पक्षी लूंच खायेंगे तथापि जो उसके हाड़, हाड़ की मज्जा और मल सड़ कर जितना दुर्गन्ध करेगा उतना जगत् का अनुपकार होगा; और जो जलाना है वह सर्वोत्तम है क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे।

(प्रश्न) जलाने से भी दुर्गन्ध होता है।

(उत्तर) जो अविधि से जलावे तो थोड़ा सा होता है परन्तु गाड़ने आदि से बहुत कम होता है। और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है- वेदी मुर्दे के तीन हाथ गहिरी, साढ़े तीन हाथ चौड़ी, पांच हाथ लम्बी, तले में डेढ़ हाथ बीता अर्थात् चढ़ा उतार खोद कर शरीर के बराबर घी उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, मासा भर केशर डाल न्यून से न्यून आध मन चन्दन अधिक चाहें जितना ले, अगर-तगर कपूर आदि और पलाश आदि की लकड़ियों को वेदी में जमा, उस पर मुर्दा रख के पुनः चारों ओर ऊपर वेदी के मुख से एक-एक बीता तक भर के उस घी की आहुति देकर जलाना लिखा है। उस प्रकार से दाह करें तो कुछ भी दुर्गन्ध न हो किन्तु इसी का नाम अन्त्येष्टि, नरमेध, पुरुषमेध यज्ञ है। और जो दरिद्र हो तो बीस सेर से कम घी चिता में न डालें, चाहे वह भीख मांगने वा जाति वाले के देने अथवा राज से मिलने से प्राप्त हो परन्तु उसी प्रकार दाह करे। और जो घृतादि किसी प्रकार न मिल सके तथापि गाड़ने आदि से केवल लकड़ी से भी मृतक का जलाना उत्तम है क्योंकि एक विश्वा भर भूमि में अथवा एक वेदी में लाखों क्रोड़ों मृतक जल सकते हैं। भूमि भी गाड़ने के समान अधिक नहीं बिगड़ती और कबर के देखने से भय भी होता है। इससे गाड़ना आदि सर्वथा निषिद्ध है।।२७।।

२८- परमेश्वर मेरे स्वामी अबिरहाम का ईश्वर धन्य है जिसने मेरे स्वामी को अपनी दया और अपनी सच्चाई विना न छोड़ा। मार्ग में परमेश्वर ने मेरे स्वामी के भाइयों के घर की ओर मेरी अगुआई किई।। -तौन उत्प० पर्व० २४। आ० २७।।

(समीक्षक) क्या वह अबिरहाम ही का ईश्वर था? और जैसे आजकल बिगारी वा अगवे लोग अगुआई अर्थात् आगे-आगे चलकर मार्ग दिखलाते हैं तथा ईश्वर ने भी किया तो आजकल मार्ग क्यों नहीं दिखलाता? और मनुष्यों से बातें क्यों नहीं करता? इसलिए ऐसी बातें ईश्वर वा ईश्वर के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं किन्तु जंगली मनुष्य की हैं।।२८।।

२९- इसमअऐल के बेटों के नाम ये हैं- इसमअऐल का पहिलौठा नबीत और कीदार और अदबिएल और मिबसाम।। और मिसमाअ और दूमः और मस्सा।। हदर और तैमा इतूर, नफीस और किदिमः।। -तौन उत्प० पर्व० २५। आ० १३। १४। १५।।

(समीक्षक) यह इसमअऐल अबिरहाम से उसकी हाजिरः दासी का पुत्र हुआ था।।२९।।

३०- मैं तेरे पिता की रुचि के समान स्वादित भोजन बनाऊंगी।। और तू अपने पिता के पास ले जाइयो जिससे वह खाय और अपने मरने से आगे तुझे आशीष देवे।। और रिबकः ने घर में से अपने जेठे बेटे एसौ का अच्छा पहिरावा लिया।। और बकरी के मेम्नों का चमड़ा उसके हाथों और गले की चिकनाई पर लपेटा।। तब यअकूब अपने पिता से बोला कि मैं आपका पहिलौठा एसौ हूं। आपके कहने के समान मैंने किया है, उठ बैठिये और मेरे अहेर के मांस में से खाइये जिससे आप का प्राण मुझे आशीष दे।। -तौन उत्प० पर्व० २७। आ० ९। १०। १५। १६। १९।।

(समीक्षक) देखिये! ऐसे झूठ कपट से आशीर्वाद ले के पश्चात् सिद्ध और पैगम्बर बनते हैं क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? और ऐसे ईसाइयों के अगुआ हुए हैं पुनः इनके मत की गड़बड़ में क्या न्यूनता हो? ।।३०।।

३१- और यअकूब बिहान को तड़के उठा और उस पत्थर को जिसे उसने अपना तकिया किया था खम्भा खड़ा किया और उस पर तेल डाला।। और उस स्थान का नाम बैतएल रक्खा।। और यह पत्थर जो मैंने खम्भा खड़ा किया ईश्वर का घर होगा।। -तौन उत्प० पर्व० २८। आ० १८। १९। २२।।

(समीक्षक) अब देखिये जंगलियों के काम। इन्होंने पत्थर पूजे और पुजवाये और इसको मुसलमान लोग ‘बैतएलमुकद्दस’ कहते हैं। क्या यही पत्थर ईश्वर का घर और उसी पत्थरमात्र में ईश्वर रहता था? वाह-वाह जी! क्या कहना है ईसाई लोगो! महाबुत्परस्त तो तुम्हीं हो।।३१।।

३२- और ईश्वर ने राहेल को स्मरण किया और ईश्वर ने उसकी सुनी और उसकी कोख को खोला।। और वह गर्भिणी हुई और बेटा जनी और बोली कि ईश्वर ने मेरी निन्दा दूर किई।। -तौन उत्प० पर्व० ३०। आ० २२। २३।।

(समीक्षक) वाह ईसाइयों के ईश्वर! क्या बड़ा डाक्तर है! स्त्रियों की कोख खोलने को कौन से शस्त्र वा औषध थे जिनसे खोली, ये सब बातें अन्धाधुन्ध की हैं।।३२।।

३३- परन्तु ईश्वर अरामी लावन कने स्वप्न में रात को आया और उसे कहा कि चौकस रह तू यअकूब को भला बुरा मत कहना।। क्योंकि तू अपने पिता के घर का निपट अभिलाषी है तूने किसलिये मेरे देवों को चुराया है।। -तौन उत्प० पर्व० ३१। आ० २४। ३०।।

(समीक्षक) यह हम नमूना लिखते हैं, हजारों मनुष्यों को स्वप्न में आया, बातें किईं, जागृत साक्षात् मिला, खाया, पिया, आया, गया आदि बाइबल में लिखा है परन्तु अब न जाने वह है वा नहीं? क्योंकि अब किसी को स्वप्न वा जागृत में भी ईश्वर नहीं मिलता और यह भी विदित हुआ कि ये जंगली लोग पाषाणादि मूर्तियों को देव मानकर पूजते थे परन्तु ईसाइयों का ईश्वर भी पत्थर ही को देव मानता है, नहीं तो देवों का चुराना कैसे घटे? ।।३३।।

३४- और यअकूब अपने मार्ग चला गया और ईश्वर के दूत उसे आ मिले।। और यअकूब ने उन्हें देख के कहा कि यह ईश्वर की सेना है।। -तौनउत्पन पर्व० ३२। आ० १। २।।

(समीक्षक) अब ईसाइयों का ईश्वर मनुष्य होने में कुछ भी सन्दिग्ध नहीं रहा, क्योंकि सेना भी रखता है। जब सेना हुई तब शस्त्र भी होंगे और जहाँ तहाँ चढ़ाई करके लड़ाई भी करता होगा, नहीं तो सेना रखने का क्या प्रयोजन है? ।।३४।।

३५- और यअकूब अकेला रह गया और वहां पौ फटे लों एक जन उससे मल्लयुद्ध करता रहा। और जब उसने देखा कि वह उस पर प्रबल न हुआ तो उसकी जांघ को भीतर से छूआ। तब यअकूब के जांघ की नस उसके संग मल्लयुद्ध करने में चढ़ गई।। तब वह बोला कि मुझे जाने दे क्योंकि पौ फटती है और वह बोला मैं तुझे जाने न देऊंगा जब लों तू मुझे आशीष न देवे।। तब उसने उससे कहा कि तेरा नाम क्या ? और वह बोला कि यअकूब।। तब उसने कहा कि तेरा नाम आगे को यअकूब न होगा परन्तु इसराएल, क्योंकि तूने ईश्वर के आगे और मनुष्यों के आगे राजा की नाईं मल्लयुद्ध किया और जीता।। तब यअकूब ने यह कहिके उससे पूछा कि अपना नाम बताइये और वह बोला कि तू मेरा नाम क्यों पूछता है और उसने उसे वहां आशीष दिया।। और यअकूब ने उस स्थान का नाम फनूएल रक्खा क्योंकि मैंने ईश्वर को प्रत्यक्ष देखा और मेरा प्राण बचा है।। और जब वह फनूएल से पार चला तो सूर्य की ज्योति उस पर पड़ी और वह अपनी जाँघ से लँगड़ाता था।। इसलिये इसरायल के वंश उस जांघ की नस को जो चढ़ गई थी आज लों नहीं खाते क्योंकि उसने यअकूब के जांघ की नस को जो चढ़ गई थी; छूआ था।। -तौन उत्प० पर्व० ३२। आ० २४। २५। २६। २७। २८। २९। ३०। ३१। ३२।।

(समीक्षक) जब ईसाइयों का ईश्वर अखाड़मल्ल है तभी तो सरः और राखल पर पुत्र होने की कृपा की। भला यह कभी ईश्वर हो सकता है? अब देखो लीला! कि एक जना नाम पूछे तो दूसरा अपना नाम ही न बतावे? और ईश्वर ने उसकी नाड़ी को चढ़ा तो दी और जीत गया परन्तु जो डाक्टर होता तो जांघ की नाड़ी को अच्छी भी करता। और ऐसे ईश्वर की भक्ति से जैसा कि यअकूब लंगड़ाता रहा तो अन्य भक्त भी लंगड़ाते होंगे। जब ईश्वर को प्रत्यक्ष देखा और मल्लयुद्ध किया यह बात विना शरीर वाले के कैसे हो सकती है? यह केवल लड़कपन की लीला है।।३५।।

३६- ईश्वर का मुंह देखा।। -तौनउत्पन पर्व० ३३। आ० १०।।

(समीक्षक) जब ईश्वर के मुंह है और भी सब अवयव होंगे और वह जन्म मरण वाला भी होगा।।३६।।

३७- और यहूदाह का पहिलौठा एर परमेश्वर की दृष्टि में दुष्ट था सो परमेश्वर ने उसे मार डाला। तब यहूदाह ने ओनान को कहा कि अपने भाई की पत्नी पास जा और उससे ब्याह कर अपने भाई के लिए वंश चला।। और ओनान ने जाना कि यह वंश मेरा न होगा और यों हुआ कि जब वह अपने भाई की पत्नी पास गया तो वीर्य्य को भूमि पर गिरा दिया।। और उसका वह कार्य्य परमेश्वर की दृष्टि में बुरा था इसलिये उसने उसे भी मार डाला।। -तौनउत्पन पर्व० ३८। आ० ७। ८। ९। १०।।

(समीक्षक) अब देख लीजिये! ये मनुष्यों के काम हैं कि ईश्वर के? जब उसके साथ नियोग हुआ तो उसको क्यों मार डाला? उसकी बुद्धि शुद्ध क्यों न कर दी? और वेदोक्त नियोग भी प्रथम सर्वत्र चलता था। यह निश्चय हुआ कि नियोग की बातें सब देशों में चलती थीं।।३७।।

तौरेत यात्र की पुस्तक

३८- जब मूसा सयाना हुआ और अपने भाइयों में से एक इबरानी को देखा कि मिस्री उसे मार रहा है।। तब उसने इधर-उधर दृष्टि किई देखा कि कोई नहीं तब उसने उस मिस्री को मार डाला और बालू में उसे छिपा दिया।। जब वह दूसरे दिन बाहर गया तो देखा, दो इबरानी आपस में झगड़ रहे हैं तब उसने उस अंधेरी को कहा कि तू अपने परोसी को क्यों मारता है।। तब उसने कहा कि किसने तुझे हम पर अध्यक्ष अथवा न्यायी ठहराया, क्या तू चाहता है कि जिस रीति से मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डाले।। तब मूसा डरा औेर भाग निकला।। -तौन या० प० २। आ० ११। १२। १३। १४। १५।।

(समीक्षक) अब देखिये! जो बाइबल का मुख्य सिद्धकर्त्ता मत का आचार्य मूसा कि जिसका चरित्र क्रोधादि दुर्गुणों से युक्त, मनुष्य की हत्या करने वाला और चोरवत् राजदण्ड से बचनेहारा अर्थात् जब बात को छिपाता था तो झूठ बोलने वाला भी अवश्य होगा, ऐसे को भी जो ईश्वर मिला वह पैगम्बर बना उसने यहूदी आदि का मत चलाया वह भी मूसा ही के सदृश हुआ। इसलिये ईसाइयों के जो मूल पुरुषा हुए हैं वे सब मूसा से आदि लेकर के जंगली अवस्था में थे, विद्यावस्था में नहीं, इत्यादि।।३८।।

३९- जब परमेश्वर ने देखा कि वह देखने को एक अलंग फिरा तो ईश्वर ने झाड़ी के मध्य में से उसे पुकार के कहा कि हे मूसा हे मूसा! तब वह बोला मैं यहां हूं।। तब उसने कहा कि इधर पास मत आ, अपने पाओं से जूता उतार, क्योंकि यह स्थान जिस पर तू खड़ा है; पवित्र भूमि है। -तौन या० पु० प० ३। आ० ४। ५।।

(समीक्षक) देखिये! ऐसे मनुष्य जो कि मनुष्य को मार के बालू में गाड़ने वाले से इनके ईश्वर की मित्रता और उसको पैगम्बर मानते हैं। और देखो जब तुम्हारे ईश्वर ने मूसा से कहा कि पवित्र स्थान में जूती न ले जानी चाहिए। तुम ईसाई इस आज्ञा के विरुद्ध क्यों चलते हो? ।।

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When the God of the Christians is a warrior, then only he is pleased to have a son on Sarah and Rakhal. Well could it ever be God? Now look at Leela! If one asks his name, the other should not tell his own name? And God offered his pulse and won, but if he was a doctor, he would have done good to the thigh pulse as well. And by devotion to such a god, as if Akumb kept limping, other devotees would also be limping. When God is seen directly and wrestled, how can this thing happen without a body? This is only the age of boyhood.

 

 

 

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