मर्यादा को लांघती हुई युवा पीढी -
भारत वर्ष कृषि प्रधान और धर्म प्रधान देश है। यह कहते-सुनते हम बड़े हुए। सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश की चिड़िया, न जाने कब और कहाँ उड़ गयी, पता ही नहीं चला। परम्परा के नाम पर धार्मिकता सिर्फ त्यौहारों में ही बची रह गयी है। भारतीय संस्कृति, अनुशासन, मानवता और शिष्टाचार जैसे संस्कारों से लबालब पूर्वजों की धरोहर पर विदेशी चाल-चलन का तड़का लग चुका है। इस तड़के को युवा पीढी ने हाथों हाथ लिया है। पाश्चात्य संस्कृति भारतीय संस्कृति पर भारी पड़ती नजर आ रही है। अभिभावकों की सीख को दकियानूसी मानकर अपनी जड़ों को खोखली कर रही युवा पीढी भी भटक सी गयी है। इस बदलाव का श्रेय स्वयं माता-पिता अथवा अभिभावकों को ही जाता है।
बच्चों को सदा दूसरों से बेहतर बनाने की होड़ में उन्हें पता ही नहीं चला कि बच्चे कब अपनी मर्यादा लांघ गए। महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है, लेकिन हर बात की एक सीमा होती है। अपनी निजी स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानकर जीने में तरक्की समझने वाली युवा पीढी किसी भी सीमा रेखा को जानना भी नहीं चाहती। यही कारण है कि आज परिवार टूट रहे हैं और रिश्ते छिन्न-भिन्न हो रहे हैं। अनुशासन और शिष्टाचार की धज्जियाँ उड़ रहीं है, जिसे अभिभावक खुली आँखों से विवश होकर देखते हुए जी रहे हैं।
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वेद के महान ज्ञाता महर्षि दयानन्द -
सारे देश में घूम-घूमकर वेदों का प्रचार, प्रतिपक्षियों से शास्त्रार्थ व वार्तालाप व अन्य अनेक ग्रन्थों का लेखन, आर्यसमाजों की स्थापना, गोरक्षा आन्दोलन आदि कार्यों को करते हुए भी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने यजुर्वेद का सम्पूर्ण और ऋग्वेद के कुल 10 मण्डलों में से 6 मण्डलों का पूर्ण और सातवें मण्डल का आंशिक भाष्य किया है। उनके द्वारा किया गया भाष्य आकार व परिमाण की दृष्टि से समस्त चार वेदों का 33 प्रतिशत से कुछ अधिक है। वेदों का यह भाष्य संस्कृत व हिन्दी दोनों में है। सभी मन्त्रों के ऋषि व देवताओं सहित स्वर व छन्द भी दिये गये हैं और मन्त्रों का पदच्छेद, अन्वय, पदों के संस्कृत व हिन्दी में अर्थ सहित इन दोनों भाषाओं में प्रत्येक मन्त्र का भावार्थ भी दिया गया है। मण्डल, सूक्त आदि के अन्त में पूर्व के सूक्त की बाद के सूक्त के साथ संगति कैसे लगती है, यहेभी दर्शायी गई है। कई स्थलों पर सायण भाष्य की न्यूनता व त्रुटियों को बताया गया है। इस प्रकार से महर्षि दयानन्द द्वारा किया गया भाष्य संसार के इतिहास में अपूर्व ही नहीं, अपितु सर्वोत्तम है।
While travelling all over the country to propagate the Vedas, debate and discussions with opponents, writing many other books, founding Arya Samaj, cow protection movement etc., Maharishi Dayanand Saraswati has done complete commentary of Yajur Veda and 6 Mandals out of the total 10 Mandals of Rig Veda and partial commentary of the seventh Mandal.
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वर्तमान में जीना चाहिए -
हमें अपने जीवन में हमेशा वर्तमान में जीना चाहिए यह बात कहना बड़ी आसान है निभाना बड़ा मुश्किल। लोग जीवन में भविष्य की योजनाएं बनाते रहते हैं। भविष्य की योजना बच्चों को लेकर बनाने वालो को हमने आज की तारीख में रोते-बिलखते हुए देखा है। ऐसे कितने ही लोग है जिन्होंने खुद अपने वर्तमान में दुःख उठाकर बच्चों के सुंदर भविष्य के लिए पाई-पाई जोड़ी और आज दुःख उठा रहे हैं।
जीवन में अक्सर लोग अपने बीते दिनों की यादों में खोकर अपने सुखपूर्ण समय को याद करते समय दुःख व्यक्त करते हैं। हमारा मानना है कि इंसान को वर्तमान मेें जीना चाहिए। मैंने कल क्या खो दिया, मेरा बहुत नुक्सान हो गया, यह सोच-सोच कर अपने वर्तमान पर केन्द्रित होने की बजाए अपने आने वाले कल को खराब मत करो। दुर्भाग्य से विद्यार्थी, व्यापारी और बुजुर्ग हमेशा बीते हुए कल को याद करते हैं। विद्यार्थी अपनी पिछली सफलताओं को महान बताता है। वर्तमान में इन्टरव्यू या टेस्ट में पास नहीं हो पाता तो भविष्य के लिए एकाग्रचित नहीं होता बल्कि पिछली शानदार सफलता को याद रखता है और वर्तमान में कोसता है। यह बात ठीक नहीं है। व्यापारी को वर्तमान में अगर नुक्सान हो जाए तो वह बीते हुए कल में मिले लाभ का जिक्र करता है। वह चाहता है कि उसे आज भी लाभ मिले लेकिन समय बदलता रहता है। यह उसकी सबसे बड़ी भूल होती है। अगर भविष्य अच्छा रखना है तो फिर वर्तमान में जीना होगा।
In life, people often express sorrow while remembering their happy times by getting lost in the memories of their past. We believe that a person should live in the present. Instead of thinking about what I lost yesterday, I suffered a huge loss, do not spoil your tomorrow instead of focusing on the present. Unfortunately, students, businessmen and the elderly always remember the past. Students consider their past successes to be great. If they are unable to pass an interview or test in the present, they do not concentrate for the future, but remember their past great success and curse the present. This is not right.
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